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उत्तराखंड सरकार ने दो दिन की लंबी चर्चा के बाद आखिरकार यूसीसी कानून को सदन में पारित कर लिया है । इस कानून में सरकार ने उत्तराखंड में लिविंग रिलेशनशिप को मान्यता दे दी है । हालांकि इस कानून में जिस तरह का प्रावधान है उसको लेकर कांग्रेस के तमाम विधायक को और विपक्ष में बसपा और निर्दलीय विधायकों ने भी आपत्ति दर्ज कराई है। लिविंग रिलेशनशिप को सरकार ने इस कानून में मान्यता दी है लेकिन उसमें कुछ शर्ते भी रखी हैं। जैसे लिविंग रिलेशनशिप में रहने वाले लड़की और लड़के को उम्र 21 साल से कम नहीं होनी चाहिए साथ ही दोनों अपने परिजनों से लिविंग रिलेशनशिप में रहने की परमिशन लेंगे इसके बाद रजिस्टार ऑफिस में सारी जानकारी देकर लिविंग रिलेशनशिप में रहने का सर्टिफिकेट लेकर ही एक साथ रह पाएंगे। इतना ही नहीं लिविंग रिलेशनशिप के संबंध समाप्त करने की जानकारी भी रजिस्ट्रार ऑफिस को देनी होगी ।

एक सबसे बड़ी बात इस कानून में यह है कि अगर लिविंग रिलेशनशिप में रहते वक्त कोई बच्चा होता है तो उसकी वैधता भी मिल जाएगी। हालांकि लिविंग रिलेशनशिप और शादी में बहुत ज्यादा अंतर नहीं रह गया है लेकिन शादी में पति-पत्नी को अलग होने के लिए तलाक का सहारा लेना पड़ता था वही लिविंग रिलेशनशिप में ऐसा नहीं होगा और जब भी युवक युवती को अलग होना होगा तो वह इसकी जानकारी रजिस्टार ऑफिस को देखकर स्वेच्छा से अलग हो पाएंगे। साथ ही लिविंग रिलेशनशिप में रहने वाले युवक युवती को किसी भी तरह के लेन देन का दावा करने का अधिकार नहीं होगा लेकिन दोनो से हुआ बच्चा दोनो की ही जिम्मेदारी होगा। लेकिन अगर युवक व युवती दोनों ही बच्चे को रखना चाहते हैं तो उन्हें अदालत में जाकर कस्टडी का दावा करने का अधिकार होगा।

यूसीसी में लिविंग रिलेशनशिप को मान्यता दिए जाने को लेकर विपक्ष की तरफ से सरकार से कई सवाल पूछे गए। साथ ही सामाजिक परंपराओं का हवाला देकर सरकार पर सवाल भी उठेंगे की सरकार ऐसे कानून बनाकर समाज को कहां ले जाना चाहती है जबकि उत्तराखंड देवभूमि है और ऐसे में बिना शादी के जवान युवक युवती का साथ रहना किस मायने में सही है । लिविंग रिलेशनशिप का हवाला देकर कांग्रेस के तमाम विधायको ने इस कानून मैं कमियां बता कर इस कानून को प्रवर समिति को भेजने की भी सिफारिश से की थी। लेकिन सरकार ने संख्या बल के आधार पर इस कानून को पारित करा लिया है अब देखना यह होगा कि लिविंग रिलेशनशिप को मान्यता मिलने के बाद सामाजिक तौर पर इसका कितना विरोध होता है और उत्तराखंड के लोग इसको किस रूप में स्वीकार करते हैं।

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